hindisamay head


अ+ अ-

कविता

सिसक रही हिरनी

जगदीश व्योम


राजा मूँछ मरोड़ रहा है
सिसक रही हिरनी।

बड़े बड़े सींगों वाले मृग
राजा ने मारा
किसकी यहाँ मजाल
कहे राजा को हत्यारा
मुर्दानी छाई जंगल में
सब चुपचाप खड़े
सोच रहे सब यही कि
आखिर आगे कौन बढ़े
घूर रहा आक्रोश वृत्त में
ज्यों घूमे घिरनी।

एक कहीं से स्वर उभरा
मुँह सबने उचकाए
दबे पड़े साहस के सहसा
पंख उभर आए
मन ही मन संकल्प हो गए
आगे बढ़ने के
जंगल के अत्याचारी से
जमकर लड़ने के
पल में बदली हवा
मुट्ठियाँ सबकी दिखीं तनी।

रानी तू कह दे राजा से
परजा जान गई
अब अपनी अकूत ताकत
परजा पहचान गई
मचल गई जिस दिन परजा
सिंहासन डोलेगा
शोषक की औकात कहाँ
कुछ आकर बोलेगा
उठो उठो सब उठो
उठेगी पूरी विकट वनी।


End Text   End Text    End Text